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हनुमान चालीसा: हर संकट का समाधान – जानिए चमत्कारी लाभ और सही विधि
भक्तिApril 11, 20254 min read

हनुमान चालीसा: हर संकट का समाधान – जानिए चमत्कारी लाभ और सही विधि

पं. महेन्द्र पाण्डेय

Written by पं. महेन्द्र पाण्डेय

Vedic Astrologer & Ritual Specialist

क्या आप जानते हैं हनुमान चालीसा में छिपे हैं जीवन बदलने वाले रहस्य?

हनुमान चालीसा केवल एक भक्ति गीत नहीं है, यह एक शक्तिशाली साधना है। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित यह चालीसा 40 चौपाइयों के माध्यम से न केवल भगवान हनुमान की स्तुति करती है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करती है। यह पाठ डर, निराशा और नकारात्मकता को जड़ से मिटा सकता है।

क्यों करें हनुमान चालीसा का पाठ? | मानसिक शांति से लेकर आत्मरक्षा तक

हनुमान चालीसा का पाठ करने से:

• मानसिक तनाव कम होता है

• जीवन में साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है

• नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है

• घर में सकारात्मक वातावरण बना रहता है

• विशेषकर मंगलवार और शनिवार को इसका पाठ करने से शुभ फल कई गुना बढ़ जाते हैं।

हनुमान चालीसा पाठ की सही विधि – हर भक्त को जाननी चाहिए

1. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

2. हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।

3. लाल फूल, सिंदूर और प्रसाद अर्पित करें।

4. शांत मन और पूर्ण श्रद्धा से पाठ शुरू करें।

5. पाठ के बाद हनुमान आरती और प्रसाद वितरण करें।

हनुमान चालीसा से जुड़े चमत्कारिक अनुभव – जानकर आप भी करेंगे नियमित पाठ

कई भक्तों ने बताया है कि हनुमान चालीसा ने उन्हें:

- असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाई

- व्यापार में आश्चर्यजनक सफलता दी

- परिवारिक कलह को शांति में बदला

- डर, भूत-प्रेत बाधा से सुरक्षा दी

आप भी इस अनुभव को पा सकते हैं, बस शुरुआत करनी है।

💡 अब आपकी बारी है – आज ही शुरू करें हनुमान चालीसा का पाठ

अगर आप भी जीवन में शांति, सुरक्षा और सफलता चाहते हैं, तो आज ही से हनुमान चालीसा का नियमित पाठ शुरू करें। इसके सकारात्मक प्रभाव आपको चौंका देंगे।

👉 और जानने के लिए हमारे ब्लॉग को पूरा पढ़ें और दूसरों के साथ साझा करें।

हनुमान चालीसा (पूर्ण पाठ)

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥

॥ दोहा ॥ जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ वज्र और ध्वजा विराजे। काँधे मूँज जनेऊ साजे॥

शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज सवारे॥

लाय सजीवन लखन जियाए। श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्त्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंतकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥

जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महासुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

॥ दोहा ॥ पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

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